

(मीडिया सम्मान परिवार) बलरामपुर -अमानत अली खान उर्फ कलयुग का भगत सिंह ने साफ शब्दों में कहा है कि राजनीति अब सेवा का नहीं, बल्कि जाति, धर्म और लालच का खेल बन गई है। हर चुनाव में जनता बड़े उत्साह और उम्मीद के साथ अपने मताधिकार का प्रयोग करती है, लेकिन जब बात विकास की आती है, तो हालात जस के तस बने रहते हैं।
पांच साल पहले भी जनता ने इसी उम्मीद से अपने वार्ड पार्षद और अध्यक्ष को चुना था कि वह इलाके की मूलभूत समस्याओं का समाधान करेंगे। तब भी चुनावी वादों में साफ-सफाई, पेयजल, सड़कें, सार्वजनिक टॉयलेट, बस स्टैंड और सरकारी कार्यालयों में बेहतर सुविधाएं देने की बात की गई थी। लेकिन पांच साल बीतने के बाद भी हालात वही हैं—
शहर के सौंदर्यीकरण और सफाई व्यवस्था को लेकर नगर पालिका निगम की भूमिका पर सवाल उठने लगे हैं। शहरवासियों का कहना है कि नगर पालिका की लापरवाही और काम में ढिलाई के कारण शहर का हालत बदहाल हो गया है। गलियों और सड़कों पर कचरे के ढेर, नालियों का रुकना और सार्वजनिक स्थानों की सफाई न होना आम समस्या बन गई है।


अमानत खान ने बताया कि नगर पालिका द्वारा सौंदर्यीकरण के नाम पर किए गए काम केवल कागजों तक सीमित हैं। सड़क किनारे लगाए गए पौधे सूख गए हैं, पार्क में घास और कचरा फैला हुआ है, और नालियों की सफाई न होने के कारण बारिश के दिनों में जलभराव की समस्या और बढ़ जाती है। हमारे शहर को साफ-सुथरा और सुंदर बनाने के लिए नगर पालिका को गंभीरता से काम करना चाहिए। लेकिन अफसोस, यहां तो केवल दिखावे के लिए काम होता है
सार्वजनिक शौचालय गंदगी से भरे हैं और कई तो उपयोग के लायक ही नहीं हैं।
बस स्टैंड और सरकारी कार्यालयों में मूलभूत सुविधाओं की भारी कमी है।
अगर यही हाल रहा तो सवाल उठता है कि क्या जनता ने सही प्रतिनिधि चुना था?
क्या फिर दोहराए जाएंगे वही वादे?


अब जब 11 फरवरी 2025 के चुनाव में नए पार्षदों के साथ नए अध्यक्ष मिलेंगे तो जनता फिर से उम्मीद कर रही है कि इस बार कुछ बदलाव देखने को मिलेगा। लेकिन अ अली खान का कहना है कि क्या इस बार भी वही पुरानी कहानी दोहराई जाएगी? क्या इस बार पार्षद, नगर अध्यक्ष और अन्य जनप्रतिनिधि कोई ठोस रोडमैप बनाएंगे जिससे इन समस्याओं का स्थायी समाधान निकाला जा सके? या फिर अगले पांच साल भी इसी तरह वादों और बहानों में बीत जाएंगे?
चुनाव प्रचार में खर्च होते लाखों, लेकिन मूलभूत सुविधाओं पर चुप्पी क्यों?




अमानत अली खान ने चुनावों में खर्च होने वाले पैसे पर भी सवाल उठाए हैं। जब लाखों रुपये प्रचार, रैलियों और पोस्टरों पर खर्च किए जाते हैं, तो फिर जनता की मूलभूत सुविधाओं के लिए फंड की कमी क्यों बताई जाती है? अगर इतनी ही तत्परता विकास कार्यों में दिखाई जाए, तो शहर की हालत सुधर सकती है। लेकिन हकीकत यह है कि जीतने के बाद अधिकतर जनप्रतिनिधि जनता से दूर हो जाते हैं और अपने राजनीतिक स्वार्थ को प्राथमिकता देते हैं।
जनता को भी अपनी जिम्मेदारी समझनी होगी
अमानत अली खान यह भी कहते हैं कि सिर्फ जनप्रतिनिधियों को दोष देने से कुछ नहीं होगा। जनता को भी अपनी जिम्मेदारी समझनी होगी। अगर पांच साल तक चुप बैठकर सिर्फ चुनावी वादों पर भरोसा किया जाएगा, तो हालात कभी नहीं बदलेंगे। जनता को अपने अधिकारों के प्रति जागरूक होना होगा और नेताओं से हर वादे का हिसाब मांगना होगा।
क्या इस बार कोई बदलाव आएगा?
अब यह देखना दिलचस्प होगा कि नए पार्षद और नगर प्रशासन क्या कोई ठोस योजना बनाते हैं, या फिर जनता को अगले चुनाव तक बस आश्वासनों पर ही टिके रहना होगा अमानत अली खान का कहना है कि अगर जल्द ही समस्याओं का समाधान नहीं निकला, तो जनता को अपनी आवाज़ और बुलंद करनी होगी, ताकि सिस्टम को जवाबदेह बनाया जा सके।